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Saturday, 24 July 2021

टेलीफोन(मोबाइल ) : टेलीफोन का इतिहास और विकास

 टेलीफोन(मोबाइल ) : टेलीफोन का इतिहास और विकास 



दोस्तों हम आपको बता दे की टेलीफोन आज के समय में संचार के सबसे ज्यादा और बेहतर रूप से प्रयोग होने वाला पहला उपकरण है।  संचार प्रौद्योगीकी में अब तक के सबसे महत्वपूर्ण उपकरण में से एक टेलीफ़ोन है।  इसके जरिए  आज हम पहाड़ो , महासागरों और दुनिया के सभी प्रकार के विपरीत स्थित में जुड़े होते है।  हम किसी भी प्रकार के महत्वपूर्ण जानकारी को जल्दी और बहुत ही कुशलता से दे सकते है और  पा सकते है।  इस संचार के साधन को आज इस प्रकार से मॉडिफाइड कर दिया जा रहा की हम बहुत ही काम स्थान और किसी भी जगह में ले जाने के लिए सक्षम हो रहे है।  अब सेल फ़ोन , स्मार्टफोन के साथ हम अपने मोबाइल फ़ोन से महत्वपूर डेटा भेज सकते है।किसी भी महत्वपूर्ण जानकारी  को याद के लिए रख सकते है।  किसी भी फ़ोन से हटाया जानकारी को भी आज हम पौंआ प्राप्त करने में सक्षम है। चाहे हम आनंदित चीजों की बात करे या शिक्षा प्राप्त  करने की बता करे सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने में आज हम इस संचार के साधन से सक्षम है।  इसलिए उस मानव के बारे में हमें जानना बहुत महत्वपूर्ण है जिन्हों ने इस प्रकार के   अविष्कार किया है।    यानि हमें इसके इतिहास के बारे में जरूर जानना चाहिए। 




टेलीफोन की इतिहास क्यां है ?
इतिहास : इसके इतिहास को जानने के लिए हम इसके चरणों के द्वारा जानने कोशिश करते है ,यानि  पहली ,दूसरी और  अन्य प्रयासो  के अनुसार देखते है। .. 
पहला प्रयास : 1672 रॉबर्ट हुक ने 1672  में पहला ध्वनिक टेलीफोन बनाया।   बच्चे के बनाया खिलौना की तरह टू - सुप कैन   तरह , हुक ने पाया की ध्वनि एक तार या स्ट्रिंग पर एक तरफ एक मुख्यपत्र  एयरपीस तक भेजी जा सकती है।  रॉबर्ट हुक ने  पाया की दो तरफ कोई भी एक ही प्रकार के पदार्थ को एक स्ट्रिंग से बांध कर ध्वनि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक  पहुँचाया जा सकता है।  

टेलीफोन स्टेशन 


1838 :- सैमुअल बी मोर्स ने पाया की ध्वनि के एक पैटर्न को प्रसारित करने के लिए अंतराल में एक बटन दबाकर या जारी करके सन्देश को प्रसारित किया जा सकता है।  इसे मोर्स कोड के नाम से जाना जाता था।  
1858 :- साइरस फ़ील्ड  ने टेलीग्राफ द्वारा इंग्लैंड और यू.एस. को जोड़ने वाली पहली ट्रान्साटलांटिक टेलीफोन केबल बिछाने की मांग की।   अगस्त 1858 में पूरा होने से पहले इस परियोजना को असफलताओ का सामना करना पड़ा था।  

टेलीफोन का विकास 


1867 :- 1867 में समुद्र में पहली बार सिग्नल लैम्प के साथ डॉट्स और डैश फ्लैश किये गए थे।  यह विचार ब्रिटिश एडमिरल फिलिप कोलंब से आया था , जिन्होंने आर्थर सीडब्ल्यू एडिलस के सिग्नल लैम्प डिजाइन का इस्तेमाल किया था और अन्य जहाजों के साथ संवाद करने के लिए एक कोड तैयार किया था।  कोड काफी हद तक मोर्स कोड की जित हुई। 



Friday, 16 July 2021

बॉक्साइट नगरी लोहरदगा :-झारखण्ड की प्रमुख स्थलों में एक

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बॉक्साइट नगरी लोहरदगा :-झारखण्ड की प्रमुख स्थलों में एक 



.बॉक्साइट की नगरी लोहरदगा झारखण्ड के बारे में आज मुझे कुछ लिखने का मौका मिला है।  मै अपने जिला का बारे में लिख रहा हूँ। यह मौका आज मुझे मिला की मै अपने जिला के बारे में लिखू। मुझे काफी खुशी हो रही है की मुझे अपने अपने जिला के बारे में लिखने के लिया मौका मिला है।  इस लेख में मै  इस जिले की इतिहास और प्रमुख धार्मिक स्थलों के बारे में बतायूँगा। 




दोस्तों आपको मेरा लेख कैसा लगा कमेंट बॉक्स में कमेंट करे अगर आपके पास कोई सुझाव है तो जरूर कमेंट करे।   लोहरदगा की इतिहास :- 1983 में रांची को विभाजित कर तीन जिले बनाये गए रांची , गुमला  और लोहरदगा। इस प्रकार से लोहरदगा जिला अस्तित्व में आया।  जिला का नामकरण लोहरदगा शहर के नाम पर किया गया , जो जिला का प्रशासनिक मुख्यालय बना।  सं 1972 में लोहरदगा को अनुमंडल एवं  1983 में जिला का रूप दिया गया।  जैन पुराणों के अनुसार भगवन महावीर ने लोहरदगा की यात्रा की थी।  जंहा पर भगवान महावीर रुके थे उस स्थान को लोर -ए -यादगा  के नाम से जाना जाता है ,जिसका मुंडारी में " आँसूवो की नदी ( River of Tear )" होता है।  सम्राट अकबर पर लिखी पुस्तक "आइने अकबरी " में भी " किस्मत -ए -लोहरदगा " का उल्लेख मिलता है।  लोहरदगा हिंदी के दो शब्दों "लोहार " जिसका अर्थ लोहे का व्यापारी और "दगा " जिसका अर्थ   केंद्र होता है अथार्त  लोहे खनिज का केंद्र होता है  HOME       ||  FACEBOOK        || WHATSAPP    ||  YOUTUBE            ||   WEBSITE           ।  


यह जिला झारखण्ड राज्य के दक्षिण पश्चिम भाग में  अवस्तित है जिसका अक्षांशीय विस्तार 23degree 30min. उतर से 23degree 40min. उतर तथ देशांतरीय विस्तार 84degree 40min. से 84degree 50min.  पूर्वी तक है।  छोटानागपुर पठार के जनजातीय बहुल क्षेत्र में 1491 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल  से आच्क्षादित है।  जिला छोटे छोटे पहाड़ो एवं जंगलो से घिरा हुआ है।  इसका सामान्य ढलान पश्चिम से पूर्वी की ओर है। दोस्तों मैं  आपसे मेरा फीडबैक जानना चाहता हूँ।  मेरा लेख पर आपका कोई सुझाव है तो कमेंट करे।  कोयल ,शंख ,नंदिनी , चौपाट ,फुलझर अदि जिले के प्रमुख नदिया है।  ये सभी नदियाँ वर्षा आधारित है जो गर्मियों में सुख जाती है।  जिले के पहाड़ी पथ पर कुछ झरने भी दिखाए पड़ते है।  जिसमे प्रमुख है , धरधरिया , चितरी घाघ , 27no. पूल , बूढ़ा घाघ  आदि प्रमुख है।  भूगर्भीय दृष्टि से यह क्षेत्र आर्किचन ग्रेनाइट ( Archean Granite ) एवं गनिस के बिच मुख्या रूप लेटेराइट मिट्टी पाए जाती है जो प्लीस्टोसीन युग में निर्मित हुई है।  आधुनिक काल में नदी घाटी में एलुमिनियम  पाया जाता है।  बॉक्साइट जिले की प्रमुख खनिज है।  अन्य खनिज में फेल्सपार , फायरक्ले तथा चायनाक्ले है जो कम आर्थिक महत्व के है।  जिले का एक अधिकतर भाग ग्रेनाइट एलुमिनियम , लाल मिट्टी , बलुवा मिट्टी , लाल और बजरी मिटटी से आच्छदित  है।  कुछ भागो में लेटेराइट , लाल एवं पिली मिट्टी भी पाई  जाती है।  इस में सालो भर  स्वास्थ्य वर्धक एवं आरामदायक मौसम पाया  जाता है।  वार्षिक औसत तापमान 23degree तथा वार्षिक औसत वर्षा 1000 - 1200 मिली. होती है।  यंहा वर्षा पश्चिम से पूर्व की ओर  होती है।  इस जिले में आप सभी मौसम का आनंद  ले सकते है।  सभी मौसम समय से होती है और सभी मौसम के मीडियम लेवल पर रहती है इसलिए यंहा का मौसम हमेशा  अनुकूल रहता है।  इस जिले की खूबसूरती को बढ़ाने में रेल सेवा का महत्तपूर्ण  योगदान है।  यंहा रेल सेवा जिला के निर्माण से पहले से चल रही है जो काफी मात्रा में निकलने वाली बॉक्साइट को सप्लाई करने के लिया किया जाता रहा है। यंहा दो ट्रैन पहले चलती थी लेकिन अब यंहा तीन और उससेज्यादा  पांच ट्रैन चलती है। एक ट्रैन मॉल की ट्रांसपोर्ट के लिए और बाकि  सवारी ट्रैन है जिसमे लोग यात्रा करते है।  मै  आपको  दूँ  सभी ट्रैन झारखण्ड की राजधानी राँची  से कनेक्ट है।  दो ट्रैन  को चंदवा रेल लाइन से जोड़ा गया है जो यात्रयों को डायरेक्ट दूसरे राज्यों से कनेक्ट कराती है।  ऐसे तो रांची से भी दूसरे राज्य कनेक्ट होता है लेकिन दिल्ली और हरियाणा जैसे उतर के राज्यों के लिए चंदवा रेल लाइन काफी कम टाइम में पहुंचती है। दोस्तों आपको मेरा लेख कैसा लगा कमेंट बॉक्स में कमेंट करे अगर आपके पास कोई सुझाव है तो जरूर कमेंट करे।     

प्रमुख धार्मिक स्थल : - यंहा ऐसे तो काफी धार्मिक स्थल है जो जिले की शोभा को बढ़ावा देते है।  यंहा हर दिन लोगो का आना जाना बना रहता है लेकिन मैं इस लेख में सिर्फ उन धार्मिक स्थलों के बारे बे लिखने जा रहा हूँ  जो काफी ज्यादा प्रचलित है। 


अखिलेश्वर धाम : - दोस्तों हम आपको बता दे प्रमुख धार्मिक स्थल में अखिलेश्वर धाम एक है। अखिलेश्वर धाम एक धार्मिक स्थल है , जंहा हजारो की संख्या में लोग पूजा करने के लिए आते है।  यंहा श्रवण के महीने में और भी काफी लोगो का भीड़ देखने को मिलता है। इस  धाम में  काफी बड़ा चटान में एक भगवन शिव का मंदिर है जो चटान का सबसे पिक पॉइंट पर है इसी चटान से सटा एक तालाब भी है जो काफी गहरा और बड़ा है ,जिसके तीन ओर बड़े बड़े चटान घिरे है। 


दोस्तों मैं  आपसे मेरा फीडबैक जानना चाहता हूँ।  मेरा लेख पर आपका कोई सुझाव है तो कमेंट करे।  इसमें एक मान्यता है की यंहा लोगो की सच्चे मन से मांगे गए सभी मन्नते  तुरंत ही पूरी हो जाती है।  यंहा की श्रवणी मेला (रथ मेला ) आस पास के क्षेत्र में बहुत प्रसिध्द है।  भगवन शिव के इस धाम की भौगोलिक संरचना एक तरफ चट्टान एवं एक तरफ विशाल तालाब से घिरा हुआ है।  इस दृश्य को देख कर मन को काफी शांति मिलती है।  ऐसी करना यह लोहरदगा के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह स्थल लोहरदगा जिला मुख्यालय से 21 किमी. की दुरी पर भंडरा प्रखंड में अवस्थित है। यंहा जाने के लिए आप किसी भी प्रकार के वाहन का प्रयोग कर सकते है, आप चाहे तो भाड़े की वाहन से भी जा सकते है जो बहुत ही काम भाड़ा मात्र 20 रु में पहुंचा देगी आपको भंडरा तक उसके बाद आप पैदल 2 किमी की यात्रा करेंगे तो पहुँच जायेंगे या ,कोई भी वाहन ले  जा सकते है। 


दोस्तों आपको मेरा लेख कैसा लगा कमेंट बॉक्स में कमेंट करे अगर आपके पास कोई सुझाव है तो जरूर कमेंट करे।  

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