टेलीफोन(मोबाइल ) : टेलीफोन का इतिहास और विकास
दोस्तों हम आपको बता दे की टेलीफोन आज के समय में संचार के सबसे ज्यादा और बेहतर रूप से प्रयोग होने वाला पहला उपकरण है। संचार प्रौद्योगीकी में अब तक के सबसे महत्वपूर्ण उपकरण में से एक टेलीफ़ोन है। इसके जरिए आज हम पहाड़ो , महासागरों और दुनिया के सभी प्रकार के विपरीत स्थित में जुड़े होते है। हम किसी भी प्रकार के महत्वपूर्ण जानकारी को जल्दी और बहुत ही कुशलता से दे सकते है और पा सकते है। इस संचार के साधन को आज इस प्रकार से मॉडिफाइड कर दिया जा रहा की हम बहुत ही काम स्थान और किसी भी जगह में ले जाने के लिए सक्षम हो रहे है। अब सेल फ़ोन , स्मार्टफोन के साथ हम अपने मोबाइल फ़ोन से महत्वपूर डेटा भेज सकते है।किसी भी महत्वपूर्ण जानकारी को याद के लिए रख सकते है। किसी भी फ़ोन से हटाया जानकारी को भी आज हम पौंआ प्राप्त करने में सक्षम है। चाहे हम आनंदित चीजों की बात करे या शिक्षा प्राप्त करने की बता करे सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने में आज हम इस संचार के साधन से सक्षम है। इसलिए उस मानव के बारे में हमें जानना बहुत महत्वपूर्ण है जिन्हों ने इस प्रकार के अविष्कार किया है। यानि हमें इसके इतिहास के बारे में जरूर जानना चाहिए।
टेलीफोन की इतिहास क्यां है ?
इतिहास : इसके इतिहास को जानने के लिए हम इसके चरणों के द्वारा जानने कोशिश करते है ,यानि पहली ,दूसरी और अन्य प्रयासो के अनुसार देखते है। ..
पहला प्रयास : 1672 रॉबर्ट हुक ने 1672 में पहला ध्वनिक टेलीफोन बनाया। बच्चे के बनाया खिलौना की तरह टू - सुप कैन तरह , हुक ने पाया की ध्वनि एक तार या स्ट्रिंग पर एक तरफ एक मुख्यपत्र एयरपीस तक भेजी जा सकती है। रॉबर्ट हुक ने पाया की दो तरफ कोई भी एक ही प्रकार के पदार्थ को एक स्ट्रिंग से बांध कर ध्वनि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जा सकता है।
1838 :- सैमुअल बी मोर्स ने पाया की ध्वनि के एक पैटर्न को प्रसारित करने के लिए अंतराल में एक बटन दबाकर या जारी करके सन्देश को प्रसारित किया जा सकता है। इसे मोर्स कोड के नाम से जाना जाता था।
1858 :- साइरस फ़ील्ड ने टेलीग्राफ द्वारा इंग्लैंड और यू.एस. को जोड़ने वाली पहली ट्रान्साटलांटिक टेलीफोन केबल बिछाने की मांग की।
अगस्त 1858 में पूरा होने से पहले इस परियोजना को असफलताओ का सामना करना पड़ा था।
टेलीफोन का विकास |
1867 :- 1867 में समुद्र में पहली बार सिग्नल लैम्प के साथ डॉट्स और डैश फ्लैश किये गए थे। यह विचार ब्रिटिश एडमिरल फिलिप कोलंब से आया था , जिन्होंने आर्थर सीडब्ल्यू एडिलस के सिग्नल लैम्प डिजाइन का इस्तेमाल किया था और अन्य जहाजों के साथ संवाद करने के लिए एक कोड तैयार किया था। कोड काफी हद तक मोर्स कोड की जित हुई।
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