Saturday, 10 July 2021

POPULAR SOCIAL MEDIA FACEBOOK :- History of Facebook

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POPULAR  SOCIAL MEDIA FACEBOOK :- History of Facebook 

आज इंडिया में सोशल मीडिया का प्रयोग काफी ज्यादा किया जा रहा है।  उसमे से एक फेसबुक भी है ,जिसका उपयोग लोग नॉलेज ,एंटरटेनमेंट ,कॉमेडी ,और अनेको प्रकार से करते है।  लोग इस सोशल मीडिया में दिन भर ऑनलाइन पड़े रहते है चाहे एंटरटेनमेंट के लिए या अपनी काम से लेकिन दिन रात इसका उपयोग करते रहते है।  

फेसबुक एक समाजिक नेट्वर्किंग सेवा है जिसे 4 फरवरी 2004 को फेसबुक के रूप में शुरू किया गया था।  इसकी स्थापना मार्क जुकरबर्ग और कॉलेज के रूममेट्स और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साथी छात्रों विशेष रूप से एडुआर्डो सेवरीन ,एंड्रयू मैककुलम ,डस्टिन मॉस्कोविट्ज और क्रिस  ह्यूजेस द्वारा की गयी थी।  वेबसाइट की सदस्यता शुरू में संस्थापकों द्वारा हार्वर्ड के छात्रों तक सिमित थी , लेकिन बोस्टन छेत्र के अन्य कॉलेज , आइवी लीग , और धीरे धीरे संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के अधिकांश विश्वविद्यालयो , निगमों में इसका विस्तार किया गया।  सितम्बर 2006 तक 13 वर्ष और उससे अधिक उम्र की आवश्यकता के साथ एक वैध ईमेल पते वाले सभी लोगो के लिए कर दिया गया।  

जुकरबर्ग ने 2003 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान " फेस मैस " नाम से एक वेबसाइट बनाई।  साइट में 9 सदनों की ऑनलाइन फेस बुक से  तस्वीरें , एक समय में दो को एक दूसरे के  रखकर  उपयोगकर्ताओं को " हॉट टार " मैन चुनने के लिए कहा गया है।  फेस मैस ने अपने पहले चार गान्तो में 450  आगंतुकों और 22000 फोटो दृश्य को आकर्षित किया।  साइट को कई परिसर समूह सूचि में भेजा गया था।  लेकिन कुछ दिनों बाद हार्वर्ड प्रशासन द्वारा बंद कर दिया गया। जुकरबर्ग को निष्कासन का सामना करना पड़ा और उन पर सुरक्षा भांग करने , कॉपीराइट का उलंघन करने का आरोप लगाया गया।  बाद में आरोप हटा दिए गए।  जुकरबर्ग ने कला इतिहास की अंतिम परीक्षा से पहले एक सामाजिक अध्ययन उपकरण बनाकर इस सेमेस्टर का विस्तार किया। उन्हनो  सभी कला छवियों को एक वेबसाइट पर अपलोड किया , जिनमे से प्रत्येक के साथ एक टिप्पणी अनुभाग था।  फिर साइट को अपने साथियो के साथ साझा किया।  

जिसमे एक फेसबुक एक छात्र निर्देशिका है जिसमे फोटो और व्यक्तिगत जानकारी होती है।  2003 में , हार्वर्ड के पास निजी ऑनलाइन निर्देशिका के साथ केवल एक कागजी संस्करण तह।  जुकरबर्ग ने द  हार्वर्ड क्रिमसन को बताया , " हर कोई हार्वर्ड के भीतर एक सार्वभौमिक फेस बुक के बारे में बहुत बात सरे बात कर रहा है।  मुझे लगता है की यह गलत फेमि है की विश्व विद्यालय में आने में कुछ समय लगेगा।   मै इसे और बेहतर कर सकता हूँ।  जितना वे कर सकते है , और मै इसे एक सप्ताह में कर सकता हूँ।  जनवरी 2004 में , जुकरबर्ग ने फेस मैस के बारे में एक क्रिमसन संपादकीय से प्रेरित होकर , द  फेसबुक  के नाम से जनि जाने वाली एक नई  वेबसाइट को कोडित किया , जिसमे कहा गया , यह स्पष्ट है की प्रौदयोगिकी एक केंद्रीकृत वेबसाइट बनाने के लिए आवश्यक आसानी से उपलब्ध है ,  .इसके कई  लाभ है।  जुकरबर्ग ने हार्वर्ड के छात्र एडुआर्डो सेवरिन से मुलाकात की और उनमे से प्रत्येक साइट में $1000 का निवेश करने पर सहमत हुए।  4  फरवरी 2004 को , जुकरबर्ग ने " द  फेसबुक " लांच किया ,जो मूल रूप से Thefacebook.com पर स्थित है।  


इस प्रकार से फेसबुक अपने अस्तित्व में आया जिसका आज हम अपने दोस्तों को अपनी विचार ,फोटो ,फाइल , वीडियो,और अनेको प्रकार के सोशल मीडिया से रिलेटेड चीजों को शेयर कर पते है। 



दोस्तों मैं शहींद्र भगत आपसे मेरा फीडबैक जानना चाहता हूँ।  मेरा लेख पर आपका कोई सुझाव है तो कमेंट करे। 

Wednesday, 7 July 2021

TOWER BRIDGE ( LONDON ) टावर ब्रिज बेहद खूबसूरत पूल: - टावर ब्रिज 

 


टावर ब्रिज : दोस्तों आज मैं लंदन की बेहत खूबसूरत स्थान बे बारे में बताने जा रहा हूँ।  इसके इमेज की को देख कर ही आप पता लगा सकते है , की वास्तव में इसका दृश्य किस प्रकार होगा या रियल में देखने पर कितना आनंद आता होगा।  तो चलिए जानते है इस ब्रिज की क्यां खास है जो लोगो को अपने ओर  आने के लिए आकर्षित करती है।                                        

Tower Bridge (London ): - टावर ब्रिज लन्दन शहर का  एक बिख्यात बस्क्युलर ब्रिज और सांस्कृतिक प्रतिक है।  यह ब्रिज पुरे दुनिया में अपने बनावट की वजह से बहुत ही फेमस स्थान में से एक है। 

ब्रिज का खासियत : - यह ब्रिज रोड मोटर गाड़ी , पैदल यात्री दोनों के लिए ट्रांसपोर्ट में मदद करती है।  यह ब्रिज थेम्स नदी में बनी हुयी है।  थेम्स नदी से यात्री को पार करती है।  इसका देख रेख करने के लिए ब्रिज हाउस एस्टेट्स बना हुआ है जो हमेश इसका देख रेख करर्ता है।  इस ब्रिज की लम्बाई 800 फिट ( 240 मीटर ), उचाई 213 फिट (65 मीटर ) है जो इसका दृश्य को काफी मनमोहक बनता है।  वास्तुकार होरेस जोन्स ने इसका निर्माण 21 जून 1886  में शुरू किया था और इसको पूरा बना कर 1894 में कम्पलीट किया।  इस ब्रिज को 30 जुन 1894 में खोला गया।  यह ब्रिज एक ग्रिड टावर है जो संयुक्त बेस्कुलर और सस्पेंस ब्रिज है , जिसे 1886 और 1894  के बिच बनाया गया था ,जिसे जॉन वोल्फ बैरी द्वारा इंजीनियर किया गया था। इसका अआर्किटेक्ट होरेस जोन्स ने किया था।  पूल लन्दन के टावर के करीब थेम्स नदी को पर करता है और ब्रिज हाउस एएसटेटस के स्वामित्व और रख रखाव के पांच लन्दन पूलो में से एक है , जो 1282 में स्थापित एक धर्माथर ट्रस्ट है।  पल का निर्माण लन्दन के पूर्वी छोर तक बेहतर पहुँच प्रदान करने के लिए किया गया था।  19वी  शताब्दी में अपनी व्यावसायिक  छमता का विस्तार किया था और इसे प्रिंस ऑफ़ वेल्स और डेनमार्क के एलेक्जेंडर द्वारा खोला गया।  

पूल की लम्बाई 800 फिट ( 240 मीटर ) है और इसमें 213 फिट ( 65 मीटर ) दो पूल टावर है जो ऊपरी स्तर पर दो छातिज रास्ते को जुड़े हुए है।  एक केंद्रीय जोड़ी बेस्कुलस है जो  शिपिंग की अनुमति देने के लिए खुल सकती है।  मूल रूप से हाइड्रोलिक रूप से चलने वाली आपरेटिंग तंत्र को 1972 में एलेक्ट्रो - हाड्रोलिक सिस्टम में बदल दिया गया था।  पूल लन्दन इनर रिंग रोड का हिस्सा है।  इस प्रकार लन्दन कंजेशन चार्ज जॉन की सिमा है और प्रत्येक दिन 40 ,000 क्रॉसिंग के साथ एक महत्वपूर्ण यातायात का मार्ग बना हुआ है।  पूल डेक वाहनों और पैदल यात्री दोनों के लिए स्वतंत्र रूप से सुलभ का साधन बना हुआ है।  पूल का जुड़वाँ टावर ,उच्च स्तरीये पैदल का मार्ग और विक्टोरियन इंजन कमरे टावर ब्रिज प्रदर्शनी का हिस्सा बना हुआ है।  


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Monday, 5 July 2021

भारतीय महिला तीरन्दाज़ी खिलाड़ी दीपिका कुमारी

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भारतीय महिला तीरन्दाज़ी खिलाड़ी दीपिका कुमारी

नमस्कार दोस्तों आज मै आपको झारखण्ड की मोस्ट वांटेड महिला के बारे में बताने जा रहा हूँ।  दोस्तों हम आपको बता दे इनका भी जीवन एक सिंपल झारखंडी जैसा ही था लेकिन इनके मेहनत और लगन से इनका लाइफ सीतले में अभी बहुत चेंज हो गया है। लाइफ काफी आरामदायक और सुविधा जानका हो गया है। 

दोस्तों हम जिस गर्ल्स की बात क्र रहे ह उनका नाम है दीपिका कुमारी चलिए इनके बारे में बिस्तर से जानते है। 

दीपिका कुमारी :- गोल्डन गर्ल्स के नाम से जाने जाने वाली  कुमारी महतो का जन्म तेरह जून ु 1994 को झारखण्ड के रांची ( रातू  गांव ) जिला में हुआ।  उनके पिता एक ऑटो चालक शिवनराण महतो और रांची कॉलेज में नर्स गीता महतो के घर में उनका जन्म हुआ।  बचपन से ही दीपिका अपने लक्ष्य  पर केंद्रित रही है।  दीपिका की माँ गीता बताती है की वो  बचपन में दीपिका एक दिन मेरे साथ जा रही रही थी की रस्ते में एक आम का पेड़ दिखा।  दीपिका ने कहा की वो आम तोड़ेगी।  मैंने उसे माना किया की आम बहुत ऊँची डाल  है ,नहीं तोड़ पायेगी ,तो उसने कहा , नहीं आज तो मै ऐसे तोड़ कर ही रहूँगी।   



उसने जमीन  से पत्थर उठा  कर निशान साधा।  पत्थर सीधे टहनी से टकराया और आम गिर।  दीपिका का वो निशान देख कर मुझे हैरानी हुयी . ठीक वैसे ही जीवन में भी  लक्ष्य बना लेती है उसे हासिल करके दिखती है।  जिस गांव में आज बिजली पानी की सप्लाई तक नहीं है , वंहा धनुर्बिद्या की दिशा  पकड़ने वाली दीपिका ने आज पुरे दुनिया को अपने हुनर को दिखा दी।  अत्यंत गरीब परिवार से तलूक रखने वाली गांव की लड़की अभी पुरे दुनिया में अपने हुनर से जाना जाने लगी है।  अभी हाल ही में झारखण्ड सरकार  ने दीपिका को ओलम्पिक में तीन गोल्ड मैडल हासिल करने पर पच्चास लाख का इनाम देने की घोषणा किया है।  इस प्रकार से उनको अभी तक अनेको अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है।  

दीपिका कुमारी की करियर और उप्लाधिंया :- दोस्तों हम आपको बता दे दीपिका कुमारी को अनेको अवार्ड और उपलब्धिया प्राप्त है।  दीपिका को तीरंदाजी में पहला मौका 2005 में मिला जब वो पहली बार अर्जुन आर्चरी अकादमी ज्वाइन किया।  यह अकादमी झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंड की पत्नी मीरा मुंडा ने खरसवं में शुरु  की थी।  तीरंदाजी में उनके प्रोफेशनल करियर की शुरुआत 2006 में हुए जब उनहनो tata तीरंदाजी अकादमी ज्वाइन किया। वो यंहा तीरंदाजी के दांव पेच सीखे।  इस युवा तीरंदाज ने 2006  में  मैरिड मेक्सिको में आयोजित वर्ल्ड चैम्पियन में कमपयून्ड एकल प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया।  ऐसा करने वाली वे दूसरी भारतीय थी।  यंहा से शुरू हुए सफर ने उन्हें विश्व की नम्बर वन तीरंदाजी का पद हासिल कराया। सबसे पहले वार्ष  2009 में लगभग 15 साल की दीपिका ने अमेरिका में हुए ११वी  यूथ आर्चरी चैम्पियनशिप जित कर अपनी अपनी पहचान बनायीं। फिर 2010  में एशियन गेम्स में कांस्य पद हासिल किए।  इसके बाद कोम्मोंवेल्थ खेल में महिला एकल और टीम के साथ दो सवर्ण पद हासिल किये।  रस्त्यामंडल खेल 2010 में उन्हें न सिर्फ बेक्तिगत सपरदा के स्वर्ण जीते बल्कि महिला रिकर्व टीम को भी स्वर्ण दिलाया।  भारतीय तीरंदाजी के इतिहास में वर्ष 2010 की जब -जब चर्चा होगी , इसे देश की रिकवर  तीरंदाजी दीपिका के स्वर्णिम प्रदर्शन के लिए यद् किया जायेगा।  फिर इस्तांबुल में 2011  में टॉकियो में 2012  में एकल खेलो में रजत पदक जीता।  इस तरह एक एक करके वे जित पर जित हासिल करती गयी।  इसलिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार दिया गया।  2016 में  राष्टपति प्रणब मुखर्जी ने दीपिका को पदम्श्री  से  सम्मानित किया।  इस बार 2021 में टोकियो ओलम्पिक में हैट्रिक थ्री गोल्डन अवार्ड हासिल किया जिस इस जित से प्रभावित झारखण्ड मुख्यमंत्री ने उन्हें 50 लाख का इनाम देने की घोषणा किये।  इस प्रकार से दीपिका ने अपने लाइफ में काफी सरे अवार्ड हासिल किये।  



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Saturday, 3 July 2021

आंजन धाम गुमला ,झारखण्ड ( माँ अंजनी देवी - भगवान् हनुमान जी का जन्म स्थल ) ,जाने क्यों अंजन धाम का गुफा का द्वार बंद है?

 आंजन धाम गुमला ,झारखण्ड ( माँ अंजनी देवी - भगवान्  हनुमान जी का जन्म स्थल ) ,जाने क्यों अंजन धाम का गुफा का द्वार बंद है?

latest technology दोस्तों मै अझ आपको भगवान हनुमान जी का जान सथल के बारे में कुछ इनफार्मेशन देने जा  रहा हू। मैं आपको बता दू भगवान हनुमान जी का जन्म स्थान हमारे पडोसी जिला गुमला के आंजन  नाम गॉंव में हुआ था। जो आज आंजन धाम के नाम से प्रसिद्ध है।  कहा जाता है की इस प्लेस का नाम भी माता अंजनी देवी के नाम से ही गाओं का नाम आंजन रखा गया और इस स्थान को आंजन धाम से जाना जाता है।  


आंजन : -  राम भक्त हनुमान अजर - अमर  है।  उनका नाम सप्त चिरंजीवियों में शामिल है।  देश दुनिया में उनके अनेको मंदिर है।  लेकिन हनुमान जी का जन्म स्थान झारखण्ड में एक गुफा में हुआ है माना जाता है।  जो गुमला जिला के आंजन गॉंव में है।  कहा जाता है इस जगह का नाम भी भगवान हनुमान जी के माँ श्रीमती अंजनी देवी के नाम से रखा गया है,, झारखण्ड में यह गुफा गुमला जिला से करीब २१ किलोमीटर्स  की दुरी पर है।  इसका नाम आंजन धाम है।  यंहा पहाड़ो और जंगलो के बिच एक गुफा जिसका संबंध रामायण काल से बताया जाता है।  यह भी माना जाता है की माँ अंजनी देवी यंहा रोज शिवजी का पूजन करने आती थी।  इसलिए यंहा ३६० शिवलिंग  है।  यंहा अनेक तालाब है जंहा माँ अंजनी स्नान करती थी।  अन्य कथाओ के अनुसार यह संत -ऋषियों की तपोस्थल है।  यंहा आंजन माता मंदिर बना हुआ है।  मंदिर के नीचे अत्यंत प्राचीन गुफा है।  इसे सर्प गुफा कहा जाता है। Realme C11 2021 || Buy Now दोस्तों मैं शहींद्र भगत आपसे मेरा फीडबैक जानना चाहता हूँ।  मेरा लेख पर आपका कोई सुझाव है तो कमेंट करे।    


आंजन गुफा के दवार के पास माँ अंजनी की प्रतिमा है।  यंहा हर समय पताका लहरती रहती है।  यंहा हर दिन हजारो की संख्या में भक्त गैन आते रहते है।  श्रद्धालु का मानना है की इस गुफा के अंदर एक रास्ता है।  यंहा से माँ अंजनी खटवा नदी तक जाती है और वंहा स्नान करती है।  कथा के अनुसार , एक बार यंहा के आदिवासीयो  ने माँ अंजनी को प्रसन  करने के लिए बकरे की बलि दे दी परन्तु इससे माता रुष्ट गयी।  इसके बाद माता ने गुफा का द्वार बंद कर दिया।  

देश में ऐसे अनेक तीर्थ है जंहा हनुमान जी का पूजन किया जाता ह।  

जय माँ अंजनी ,जय हनुमान भगवान

 

 

 

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गुमला का इतिहास ( गुमला , झारखण्ड ,भारत )

 


गुमला का इतिहास :-


गो मेला  :- यह मेला एक साल में एक बार होता था और एक सप्ताह के लिए जारी रहता था।  यंहा दैनिक उपयोग , बर्तन , गहने , अन्नाज ,मवेशी आदि के सभी सामान बेच दिए गए और  विमर्श किया गया।  चूँकि वस्तु को पाने के लिए कोई दूसरा विकल्प नहीं था।  इसलिए लोग साल के दौरान आवश्यक वस्तु की लम्बी सूचि बनाते थे।  ( चाहे वे शादी समारोह के लिए या किसी भी अवसर के लिए।  ) और उहे इस मेले में खरीदते थे।  दूर के सथानो के लोग यांहा कृषि और प्रयोजनों के लिए गयोऔर  बैलो जैसे पशु को खरीदने और बेचने के लिए आते थे।  धीरे धीरे लोग इस जगह में निवास करने लगे।  फिर यह एक गांव में बृद्धि हुयी और गो मेला के रूप में इसका नाम गुमला रखा गया।  



मध्यकालीन :- मध्यकालीन युग के दौरान छोटानागपुर छेत्र नागा राजवंशो के राजाओ द्वारा शासित किया गया था ।  बड़ाईक देवनंदन सिंह को गुमला मंडल पर शासन करने का अधिकार दिया गया।  ऐसा कहा जाता है की १९३१ -३२  में कोल रिबेल के दौरान ,बख्तर से ने एक प्रमुख भूमिका निभाय थी।   

रामनगर में काली मंदिर का निर्माण करने वाले श्री गंगा महाराज ने १९४२ में विवत इंडिया आंदोलन में सक्रीय भूमिका निभाए।  आजादी के लिए इस महँ योगदान के लिए , उन्हें भारत सरकार दवरा जीवन काल के पेंशन के साथ सम्मानित किया गया।  
ब्रिटिश शासन के दौरान गुमला लोहरदगा जिले के अंतर्गत था।  १८४३ में इसे बिशुनपुर प्रान्त के तहत लाया गया जो की आगे का नाम रांची था।  वास्तव में रांची जिला १८९९ में अस्तित्व में था।  १९०२ में गुमला ने रांची जिले में उप - विभाजन बना दिया था।  
१८ मई १९८३ को  गुमला जिला अस्तित्व में आया।  बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री जगनाथ मिश्रा ने इसका उद्घाटन किया और श्री दव्रिका नाथ सिन्हा ने सिर्फ जन्मे जिले के pratham upaukat  के pad को adhigrah किय। 
यह bahut afshos की baat है की गुमला mahtv का छेत्र है जो anusanshan manchitra के तहत नहीं लाया गया ह।





  
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